उत्तराखंड: लिपुलेख दर्रा सीमा व्यापार के लिए खुलेगा, पीएम मोदी चीन में करेंगे नई शुरुआत की घोषणा
लिपुलेख दर्रा सीमा व्यापार से नई शुरुआत
पिथौरागढ़ जिले की व्यास घाटी में स्थित लिपुलेख दर्रा सीमा व्यापार अब फिर से खुलने जा रहा है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने पुष्टि की है कि न सिर्फ लिपुलेख, बल्कि हिमाचल प्रदेश के शिपकी ला और सिक्किम के नाथू ला दर्रे से भी चीन के साथ व्यापारिक मार्ग शुरू किए जाएंगे। यह कदम भारत और चीन के बीच रिश्तों के नए अध्याय की शुरुआत साबित होगा।
विदेश मंत्रियों की अहम बातचीत
बीजिंग में हाल ही में हुई बैठक में भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच लंबी बातचीत हुई। इसमें लिपुलेख दर्रा सीमा व्यापार को खोलने पर सहमति बनी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि लंबित सीमा विवादों को हल करने और राजनयिक रिश्तों को मजबूत करने के लिए उच्च-स्तरीय वार्ता जारी है।
ऐतिहासिक महत्व वाला लिपुलेख दर्रा
लगभग 17,500 फीट की ऊँचाई पर स्थित लिपुलेख दर्रा सीमा व्यापार का इतिहास बेहद पुराना है। यह मार्ग न केवल कैलाश-मानसरोवर यात्रा का प्रमुख रास्ता रहा है बल्कि सदियों से व्यापारियों और तीर्थयात्रियों के लिए भी अहम रहा है। यह दर्रा उत्तराखंड को सीधे तिब्बत के पुरंग शहर से जोड़ता है। अब एक बार फिर यही दर्रा भारत और चीन की अर्थव्यवस्थाओं को जोड़ने वाला सेतु बनेगा।
उड़ान सेवाएं भी होंगी बहाल
चीन ने घोषणा की है कि भारत के साथ सीधी उड़ानें भी जल्द बहाल होंगी। इससे पर्यटन, शिक्षा और व्यवसाय को बढ़ावा मिलेगा। विशेषज्ञ मानते हैं कि लिपुलेख दर्रा सीमा व्यापार और हवाई सेवाओं की बहाली से दोनों देशों के बीच विश्वास और सहयोग का नया अध्याय शुरू होगा।
पीएम मोदी और शी जिनपिंग की पहल
रूस के कज़ान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद यह प्रक्रिया तेज हुई। उम्मीद है कि 31 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक तियानजिन में होने वाले एससीओ शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी लिपुलेख दर्रा सीमा व्यापार के औपचारिक उद्घाटन की घोषणा करेंगे।
नई साझेदारी का संकेत
विशेषज्ञों का कहना है कि इस कदम से भारत और चीन के बीच आर्थिक संबंधों के साथ-साथ लोगों के बीच सांस्कृतिक और सामाजिक जुड़ाव भी बढ़ेगा। लिपुलेख दर्रा सीमा व्यापार को फिर से खोलना सिर्फ व्यापारिक अवसर नहीं बल्कि एशिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच स्थिरता और शांति की दिशा में अहम कदम है।
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