उत्तराखंड धर्मांतरण: थारू बुक्सा जनजाति पर बड़ा खतरा
देहरादून: उत्तराखंड में धर्मांतरण का मामला लगातार गंभीर रूप ले रहा है। रिपोर्ट्स के अनुसार, नेपाल सीमा से सटे खटीमा, सितारगंज और नानकमत्ता क्षेत्रों में थारू बुक्सा जनजाति की करीब 40% आबादी ईसाई धर्म में परिवर्तित हो चुकी है। केवल यही नहीं, जौनसार बावर और अन्य आदिवासी समुदाय भी धर्मांतरण के निशाने पर बताए जा रहे हैं।
शिक्षा और चिकित्सा के बहाने बढ़ा धर्मांतरण
स्वतंत्रता के बाद से ही मिशनरियों ने उत्तराखंड के सीमावर्ती इलाकों में स्कूल और अस्पताल खोलकर प्रवेश किया। बेहतर शिक्षा और जीवन के वादों के जरिए स्थानीय आदिवासी परिवारों को धीरे-धीरे धर्मांतरण की ओर धकेला गया। अब स्थिति यह है कि धर्मांतरित पुरुष और महिलाएँ खुद ईसाई शिक्षाओं का प्रसार कर रहे हैं।
हिन्दुओं से ही जुट रहा फंड
रिपोर्ट्स के अनुसार, विदेशी फंडिंग कम होने के बाद अब ईसाई मिशनरियों ने नए तरीके खोज लिए हैं। उनके स्कूलों में हिंदू छात्रों से ज्यादा फीस वसूली जाती है और वही पैसा धर्मांतरण में इस्तेमाल किया जाता है। इतना ही नहीं, “चर्च” की जगह “प्रार्थना कक्ष” और “आश्रम” जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है ताकि लोगों को सहजता से जोड़ा जा सके।
जौनसार, नैनीताल और सितारगंज बने बड़े केंद्र
जौनसार क्षेत्र में कई स्थानीय युवक ईसाई धर्म अपना चुके हैं और अब पादरी बनकर धर्मांतरण (लॉ) अभियान चला रहे हैं। नैनीताल का “मेथोडिस्ट चर्च” अब “सत्तल आश्रम” के नाम से संचालित हो रहा है और मिशनरी गतिविधियों का केंद्र बना हुआ है। सितारगंज में भी कई स्थानीय लोग ईसाई धर्म अपनाकर प्रमुख पादरी बन चुके हैं। शिक्षा, मोबाइल फोन, किताबें और आर्थिक मदद जैसे लालच देकर धर्मांतरण को बढ़ावा दिया जा रहा है।
कानून हुआ सख्त
धर्मांतरण के मामलों को रोकने के लिए धामी सरकार ने 2018 के कानून को और कठोर बना दिया है। 2024 के संशोधित कानून के तहत धर्मांतरण दोषियों से उनके आदिवासी विशेषाधिकार छीने जा सकते हैं और उन्हें भारी जुर्माना व कारावास का सामना करना पड़ सकता है। अधिवक्ता अमित रस्तोगी का कहना है कि ईसाई बने लोग हिंदू नाम रखते हुए आरक्षण और सरकारी लाभ उठाते रहते हैं, जो समाज और कानून दोनों के लिए चिंता का विषय है।\
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