कभी टीन का गोल बिल्ला था समर्थकों की पहचान
बदलते जमाने के अनुसार ही बदल रहा है चुनावी नजरिया
चंपावत । बदलते जमाने के साथ ही चुनाव के तौर तरीके भी लगातार बदलते जा रहे हैं। पहले सड़क सुविधा नहीं थी तब प्रत्याशी केवल नगरीय क्षेत्र में ही सभाए किया करते थे। कार्यकर्ता उनके संदेश को गांव-गांव तक पहुंचाते थे। दिन का गोल बिल्ला पहनकर समर्थक अपनी राजनीतिक पार्टी की पहचान जाहिर करते थे उस वक्त कांग्रेस सोशलिस्ट व प्रजा सोशलिस्ट आदि पार्टियों हुआ करती थी।
इस दौरान बेहद शालीनता के साथ चुनाव प्रचार होता था। वर्तमान में पहाड़ों में शिक्षा के प्रसार और सुविधाओं के विस्तार के साथ चुनावी माहौल भी बदल गया है। पहले कार्यकर्ता आवाज लगाकर एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी में लोगों को चुनाव होने की जानकारी देते थे संबंधित पार्टी के कार्यकर्ता मतदाताओं को पोस्टकार्ड लिखकर ही संबंधित प्रत्याशी का प्रचार किया करते थे।
उसे वक्त गांव के ग्राम प्रधान का काफी महत्व होता था पोलिंग पार्टियों के आने पर लोग मेहमान की तरह उनका स्वागत किया करते थे।
बदलते जमाने के साथ पुरानी परंपराएं भी समाप्त होती जा रही है। बुजुर्गों का कहना है कि आज सियासी दल धन बल को ही चुनाव लड़ने का मुख्य माध्यम बने हुए हैं। गरीब और ईमानदार व्यक्ति ऐसी सियासी मैदान में उतरने की सोच भी नहीं सकता है।
86 वर्षीय गौरीशंकर जोशी के अनुसार पहले उन्होंने जिस शालीन माहौल में वोट देने की शुरुआत की थी उसे देखते हुए आज की व्यवस्था में वोट देने का मन नहीं करता है। प्रत्याशी की परख का मापदंड बदल गया है। 79 शेर सिंह कहते हैं लोकतंत्र जैसे-जैसे व्यस्त होता गया वैसे-वैसे उसमें विकृतियों और खामियां आती गई और चुनाव बेहद खर्चीला होता जा रहा है।
इसमें नैतिक और चारित्रिक मूल्यों के लिए कोई स्थान नहीं है 80 वर्ष महिला निर्मला देवी कहती है कि पहले नेता शब्द सम्मान का प्रतीक हुआ करता था लेकिन आज स्थिति ठीक इसके विपरीत है दो दशक पूर्व तक महिलाएं घर की चारदिवारी तक सीमित रहती थी आज वह खुलेआम चुनाव का संचालन करने के साथ गांव-गांव में प्रचार भी करती है।
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