“पार्षद पत्नी, सत्ता पति की! – क्या लोकतंत्र को ‘प्रॉक्सी राज’ का रोग लग गया?”
हमारे देश में पंचायत से लेकर नगर निगम तक महिला आरक्षण की व्यवस्था इस मकसद से लागू की गई थी कि महिलाओं को नेतृत्व में आगे लाया जाए। लेकिन कुछ जगहों पर यह आरक्षण “प्रॉक्सी सिस्टम” में बदल गया है, जहां नाम तो महिला पार्षद (या सरपंच) का होता है, लेकिन असल राज उनके पति चलाते हैं।
💥 पार्षद पत्नी, ‘शासन’ पति – आखिर क्यों?
– कई जगहों पर महिला पार्षद बनने के बाद उनके पति ही सभी सरकारी बैठकों में शामिल होते हैं।
– टेंडर पास करने से लेकर फंड के इस्तेमाल तक, हर फैसले में असली चेहरा पार्षद का नहीं, बल्कि उनके पति का होता है।
– जनता जिसे चुनती है, शासन वही करे – लेकिन यहाँ **”नाम बीवी का, काम पती का”** चलता है!
⚖️ यह गैरकानूनी क्यों है?
कानून के मुताबिक, कोई भी निर्वाचित प्रतिनिधि अपनी शक्तियाँ किसी और को नहीं दे सकता**। अगर कोई महिला पार्षद अपने पति को फैसले लेने दे रही है, तो यह लोकतांत्रिक मूल्यों का उल्लंघन है।
🚔 ऐसे लोगों पर क्या कार्रवाई हो सकती है?
अगर कोई पति (या कोई और व्यक्ति) महिला पार्षद की जगह सरकारी काम कर रहा है, तो उसके खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई हो सकती है:
1️⃣ IPC की धारा 419 (प्रतिरूपण करके धोखाधड़ी) – अगर पति सरकारी मीटिंग में पार्षद बनकर शामिल होता है, तो यह अपराध है।
2️⃣ IPC की धारा 170 (गलत तरीके से सरकारी पद संभालना) – जो सरकारी अधिकार नहीं रखता, वो अगर फैसला लेता है, तो उसके खिलाफ केस दर्ज हो सकता है।
3️⃣ लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 – गलत तरीके से पद का उपयोग करने पर पार्षद को अयोग्य करार दिया जा सकता है।
4️⃣ RTI एक्ट, 2005 – आप RTI के जरिए पता कर सकते हैं कि सरकारी कागजों में कौन फैसले ले रहा है।
⚡ अब जनता को जगना होगा!
अगर आपके क्षेत्र में भी कोई “सरपंच पति” या “पार्षद पति” सरकार चला रहा है, तो इसे उजागर करना ज़रूरी है। शिकायत करें, RTI डालें, और जरूरत पड़े तो कोर्ट तक जाएं।
लोकतंत्र में जनता का हक सबसे बड़ा होता है – किसी को भी इसे छीनने मत दो! 🚨
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