अघोरी कौन होते हैं और इनका इतिहास क्या है?परिचय
अघोरी, भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं का एक रहस्यमयी और रहस्यमय पहलू हैं। ये एक ऐसा सम्प्रदाय है जो शिव भक्ति, तांत्रिक क्रियाओं और सामाजिक मान्यताओं की सीमाओं को तोड़ते हुए अपनी विशेष साधना के लिए प्रसिद्ध है। अघोरी साधु अक्सर श्मशान घाटों में रहते हैं और अपनी साधना को आध्यात्मिक जागृति और मोक्ष प्राप्ति का माध्यम मानते हैं। इस लेख में हम अघोरियों के इतिहास, उनकी परंपराओं और उनकी विशेषताओं पर प्रकाश डालेंगे।
अघोरी कौन होते हैं?
अघोरी साधु भगवान शिव के अघोर स्वरूप के उपासक होते हैं। “अघोरी” शब्द का अर्थ है “जो अघोर है,” यानी जो भय, द्वेष और द्वंद से परे है। ये साधु उन चीज़ों को भी स्वीकार करते हैं जिन्हें समाज “अपवित्र” या “अशुभ” मानता है। अघोरी समाज के नियमों और धारणाओं से अलग हटकर साधना करते हैं।
ये साधु केवल भगवान शिव की आराधना करते हैं।
श्मशान घाट को साधना स्थल मानते हैं, क्योंकि यह जीवन और मृत्यु का संगम है।
ये भिक्षा पर निर्भर रहते हैं और सांसारिक सुख-सुविधाओं का त्याग करते हैं।
अघोरी कौन होते हैं अघोरियों का इतिहास
अघोर पंथ का उद्भव शिव भक्ति और तंत्र साधना से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि इस पंथ की शुरुआत 14वीं शताब्दी में बाबा कीनाराम ने की थी, जो अघोर सम्प्रदाय के पहले गुरु माने जाते हैं। बाबा कीनाराम ने वाराणसी में अघोर मठ की स्थापना की, जो आज भी इस सम्प्रदाय का केंद्र है।
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1. बाबा कीनाराम और अघोरी परंपरा
बाबा कीनाराम ने अघोरी साधना की अवधारणा को जन-जन तक पहुंचाया। उनकी शिक्षाएं आत्मा, प्रकृति और ईश्वर के साथ एकता पर आधारित थीं।
2. तांत्रिक प्रभाव
अघोरी साधना में तंत्र का महत्वपूर्ण स्थान है। ये साधु तांत्रिक क्रियाओं के माध्यम से अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
3. वाराणसी का महत्व
वाराणसी, जिसे काशी भी कहा जाता है, अघोरियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है। यहां का मणिकर्णिका घाट अघोरी साधकों के लिए विशेष महत्व रखता है।
अघोरियों की साधना और मान्यताएं
अघोरी साधु अपनी साधना के लिए कठिन और असामान्य तरीके अपनाते हैं। इनकी साधना का मुख्य उद्देश्य है मोक्ष प्राप्त करना और स्वयं को सांसारिक बंधनों से मुक्त करना।
अघोरी साधना की विधियां
श्मशान साधना: श्मशान घाट में ध्यान और साधना करना।
भूत-प्रेत साधना: आत्माओं से संपर्क करना और उनसे आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करना।
पंचमकार साधना: इस साधना में उन वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है जिन्हें सामान्यत: वर्जित माना जाता है।
अघोरी साधुओं की मान्यताएं
सभी जीव और वस्तुएं पवित्र हैं।
समाज के बंधनों और धारणाओं को तोड़ना चाहिए।
मृत्यु एक नई शुरुआत है, न कि अंत।
अघोरियों का रहन-सहन
अघोरी साधु अक्सर श्मशान घाटों में रहते हैं और भिक्षा या कभी-कभी मांसाहार पर निर्भर रहते हैं। इनका जीवन त्याग और तपस्या पर आधारित होता है।
ये साधु राख का प्रयोग अपने शरीर पर करते हैं, जिसे शुद्धता का प्रतीक माना जाता है।
ये अपने साथ खोपड़ी (कपाल) रखते हैं, जिसे वे पवित्र पात्र मानते हैं।
इनका भोजन और पहनावा सरल और न्यूनतम होता है।
अघोरी साधना का उद्देश्य
अघोरियों का मुख्य उद्देश्य आत्मज्ञान प्राप्त करना और ईश्वर के साथ एकत्व स्थापित करना है। वे मानते हैं कि सांसारिक सुख-दुःख का अनुभव हमें मोक्ष की ओर ले जाता है।
अघोरी कौन होते हैं अघोरियों की समाज में भूमिका
हालांकि अघोरी साधु समाज से अलग रहते हैं, लेकिन इनकी साधना का प्रभाव समाज पर भी पड़ता है। इन्हें दैवीय शक्तियों और कठिन समस्याओं के समाधान के लिए जाना जाता है। लोग अक्सर इनसे आशीर्वाद और सलाह लेने आते हैं।
अघोरी भारतीय अध्यात्म और तंत्र साधना का एक गहन और रहस्यमयी हिस्सा हैं। इनकी साधना और परंपराएं सांसारिक और आध्यात्मिक ज्ञान का गहन मिश्रण हैं। हालांकि इनके तरीकों को समाज अजीब और विचित्र मानता है, लेकिन इनका उद्देश्य आत्मज्ञान और मोक्ष प्राप्ति है।
FAQs
1. अघोरी कौन होते हैं?
अघोरी भगवान शिव के उपासक हैं, जो समाज से अलग रहकर साधना करते हैं।
2. अघोरी साधु कहाँ रहते हैं?
ये साधु अक्सर श्मशान घाटों में रहते हैं और वहीं साधना करते हैं।
3. अघोर पंथ की शुरुआत कब हुई?
अघोर पंथ की शुरुआत 14वीं शताब्दी में बाबा कीनाराम ने की।
4. श्मशान साधना क्यों महत्वपूर्ण है?
श्मशान साधना जीवन और मृत्यु के सत्य को समझने के लिए की जाती है।
5. अघोरी समाज से अलग क्यों रहते हैं?
ये साधु सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर आत्मज्ञान की खोज में रहते हैं।
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